Ancient Indian dite and their importance (प्राचीन भारतीय आहार और उनका महत्व )

    प्राचीन भारतीय आहार और उनका महत्व
महाभारत युग से पूर्व भारतीय इतिहास में खानपान का विशेष महत्व रहा है। भारतीय खानपान की विविधता और संस्कृति के अनुरूप होती हुई आज भी दुनिया भर में लोकप्रिय है।

भारतीय खानपान का इतिहास बहुत पुराना है और यह दक्षिण एशिया में शुरू हुआ था। वैदिक काल में भारतीय खानपान में अधिकतर अनाज, दाल, सब्जियां, फल और दूध का उपयोग किया जाता था। अधिकतर लोग शाकाहारी थे और नैतिक एवं धार्मिक कारणों से मांस खाने से बचते थे।

प्राचीन भारतीय आहार और उनका महत्व:
1. आयुर्वेदिक आहार: आयुर्वेदिक आहार प्राचीन भारतीय सभ्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। यह आहार परंपरा विज्ञान की अद्वितीय ज्ञान को आधार बनाकर आहार चयन, प्रियता, तैयारी और सेवन में समर्थ करता है। इसमें प्राकृतिक और सत्त्विक आहार के अनुसार भोजन करने की सलाह दी जाती है। यह आहार शरीर, मन, और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

2. सात्विक आहार: सात्विक आहार को ध्यान, संयम और पवित्रता के साथ भोजन करने का तरीका माना जाता है। इसमें फल, सब्जियां, शुद्ध अनाज, दूध, घी, गुड़ और द्रव्यों का सेवन शामिल होता है। यह आहार शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करता है।

3. आहार क्रिया: आहार क्रिया उपनिषदों, संहिताओं और पुराणों में वर्णित होने वाले भारतीय वैदिक आहार पद्धतियों का एक हिस्सा है। इसमें पवित्र आहार के नियमित उपयोग के माध्यम से

 मनुष्य के ब्रह्मांड से मिलाप हेतु अनुभूति होती है। यह आहार शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने में सहायता प्रदान करता है।

4. वेजेटेरियन आहार: भारतीय सभ्यता में वेजेटेरियन आहार का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक कारणों से बहुत सारे लोग अंशकारी होते हैं और गोमांस, मांस, और मछली का सेवन नहीं करते हैं। वेजेटेरियन आहार फल, सब्जियां, अनाज, दालें और मिल्क प्रोडक्ट्स का समावेश करता है। इसका उचित सेवन स्वास्थ्य, पर्यावरण और नैतिकता के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है।

प्राचीन भारतीय आहार शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था और लोगों के जीवन में संतुलन और शुद्धता को बनाए रखने में मदद करता था।

भारतीय खानपान के विभिन्न प्रकार भारत के विभिन्न भागों में विकसित हुए। उत्तर भारत में तंदूरी रोटी, दाल मखनी, छोले भटूरे आदि लोकप्रिय हैं जबकि दक्षिण भारत में दोसा, इडली, सांभर, उत्तपम आदि खास हैं। पश्चिम बंगाल में मछली और चावल का उपयोग ज्यादा होता है।

भारतीय खानपान अपनी विविधता और स्वाद के लिए जाना जाता है। यह दुनिया भर में लोकप्रिय है और आज भी भारत की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है।
प्राचीन भारतीय आहार की खोज किसने की थी, यह एक व्यक्ति की निश्चित पहचान करना कठिन है, क्योंकि यह ज्ञान विभिन्न युगों और संस्कृतियों में संचारित हुआ है। वेदों, उपनिषदों, आयुर्वेद, और पुराणों में विविध आहार विधियों का वर्णन मिलता है।
 भारतीय ऐतिहासिक एवं साहित्यिक परंपराओं में आहार के महत्व को बताने वाले अनेक ऋषि, महर्षि और धार्मिक गुरु हुए हैं। उनमें से कुछ मशहूर नाम हैं जैसे महर्षि चरक, महर्षि सुश्रुत आदि, जिन्होंने आयुर्वेदिक आहार के सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया और उसे सम्पूर्ण सामाजिक संरचना में प्रचारित किया।

इसलिए, प्राचीन भारतीय आहार की खोज किसी विशेष व्यक्ति की ही नहीं हुई है, बल्कि यह एक समूह के सदस्यों के अध्ययन और अनुभव पर आधारित है जो विभिन्न युगों में रहे धार्मिक गुरुओं, चिकित्सकों और वैद्यों ने किया है।

प्राचीन भारतीय भोजन: नाम और लाभ
आपके लिए कुछ प्राचीन भारतीय भोजनों उपयोगी मसालाॆं के नाम और लाभ हैं। l

1. अश्वगंधा (Ashwagandha):
   इसे "भारतीय जींदा" भी कहा जाता है। यह एक प्राचीन जड़ी बूटी है जिसे विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। इसे ताक़त और ऊर्जा बढ़ाने, तनाव को कम करने, शरीर को मजबूत करने, इम्यून सिस्टम को सुधारने, और मानसिक तनाव को कम करने में मदद मिलती है।

2. तुलसी (Tulsi):
   तुलसी को "सुप्रभात" या "हौस्ला रखने वाली" भी कहा जाता है। यह एक पवित्र पौधा है और भारतीय वनस्पति चिकित्सा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी पत्तियों और बीजों का उपयोग श्वास, जुकाम, गले की खराश, पाचन संबंधी समस्याओं, त्वचा के रोगों, और मस्तिष्क को स्पष्ट करने में किया जाता है।

3. मुलेठी (Mulethi):
   यह जड़ी बूटी मीठे स्वाद के कारण मशहूर है और इसे "यष्टिमधु" भी कहा जाता है। यह गले की सूजन, खांसी, सिरदर्द, पेट की सूजन, और गैस की समस्याओं को कम करने में मदद करती है। इसका उपयोग आंत्र में छाले को ठीक करने, मोटापे कम करने, और पाचन तंत्र को मजबूत करने में भी किया जाता है।

4. हल्दी (Haldi):
   हल्दी को एक प्राचीन भारतीय मसाले के रूप में जाना जाता है। यह एक प्राकृतिक एंटीऑक्सिडेंट है जिसमें कर्करोग प्रतिरोधी गुण होते हैं। इसे सौंदर्य और त्वचा संबंधी समस्याओं, इन्फेक्शनों, साइनस, और पाचन संबंधी समस्याओं को ठीक करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

5. चावल (Chawal): चावल भारतीय भोजन का मुख्य भाग है। यह विभिन्न प्रकार के आहार के साथ मिश्रित किया जाता है और व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। चावल भोजन की ऊर्जा स्त्रोत के रूप में जाना जाता है और भारतीय खाद्य पदार्थों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

6. गेहूँ (Gehu): गेहूं भारतीय खाद्य पदार्थों का मुख्य अंश है। इससे आटा बनाया जाता है, जिससे रोटी, पूरी और अन्य आहार तैयार किए जाते हैं। गेहूं भोजन के लिए महत्वपूर्ण है और यह व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

7. दाल (Dal): दाल भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे विभिन्न तरीकों से पकाया जाता है। यह देशभर में प्रायः हर घर में खाया जाता है। दाल अच्छी मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और आवश्यक पोषक तत्वों का स्रोत होती है।

8. तिल (Til): तिल भारतीय खाद्य पदार्थों में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण था। इसका उपयोग विभिन्न पकवानों, मिठाइयों और चटनी में किया जाता है। तिल में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और स्वास्थ्य लाभकारी तत्व होते हैं।

9. घी (Ghee): घी एक प्रमुख घटक है जो पूरे भारतीय भोजन में उपयोग होता है। यह अद्वितीय स्वाद, ऊर्जा और पोषक गुणों के कारण महत्वपूर्ण है। घी में विटामिन ए, डी, ई, और क, पोषक तत्व और एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं।

ये केवल कुछ प्राचीन भारतीय भोजनों के उदाहरण हैं और हर एक भोजन के अलग-अलग स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं। आपको हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप किसी नई आहारिक पदार्थ का सेवन करने से पहले अपने वैद्य से परामर्श करें।जो भारतीय खाद्य पदार्थों के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।

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